भारत मे एडिबल आयल रिफाइनर्स ने बड़ी देरी से ज्यादा इम्पोर्ट से दर्द और कम इम्पोर्ट से हाई मार्जिन्स के फायदे को समझा है।
अप्रैल सेप्टेम्बर में पिछले साल से 16 लाख टन एक्स्ट्रा इम्पोर्ट को करेक्ट करने में 6 महीने लगा दिया।
विदेश में तेल तेज़ रफ़्तार से नीचे आये थे, दाम क्रैश हुए थे तो Lc लिमिट्स सरपल्स हो गई थी। इसी कारण अप्रैल से सेप्टेम्बर में इम्पोर्ट पिछले साल से 16 लाख टन बढ़ गया था।
रिफाइनर्स की गलती से इम्पोर्ट बढा तो इंडियन मार्किट क्रैश हो गई। अप्रैल से सेप्टेम्बर में कांड़ला पर ओलिन 13 रुपए, रिफाइंड 16 रुपए टूट गया।
पोर्टस पर स्टॉक बढ़ने से रिफाइनर्स ने सेप्टेम्बर से इम्पोर्ट में कमी शुरू की। ट्रेड और पाइपलाइन स्टॉक सेप्टेम्बर में टॉप पर था।
अप्रैल से सेलतबर में 14 लाख टन इम्पोर्ट बढ़ने के बाद ऑक्टबेर से मॉर्च में इम्पोर्ट 16.50 लाख टन घटा है।
ऑक्टबेर से दिसंबर की तिमाही में इम्पोर्ट 10 लाख टन घटने के बाद जनवरी से मॉर्च में 6.50 लाख टन और घटा है।
विदेशी suppliers ने पोर्टस पर स्टॉक कम होते देखे तो अपनी मार्किट तेज़ कर दी। तेज़ी आई तो ट्रेड और रिफाइनर्स को पिछले घाटे पूरे करने का मौका मिला।
ऑक्टबेर से अभी तक कांड़ला मे ओलिन और सोया रिफाइंड में एक बराबर 16 रुपए किलो की तेजी आई है।